पूजा सेवाएँ
यज्ञोपवीत संस्कार पूजा
यज्ञोपवीत संस्कार अनुशासन,गरिमामय आध्यात्मिक जीवन जीने का संकल्प लेना है। हिन्दू धर्म में जनेऊ धारण करना हमेशा से ही एक पवित्र परंपरा रही है। शादी से पहले उपनयन संस्कार को सबसे महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक माना जाता है। यह प्राचीन सनातन धर्म में वर्णित दसवां संस्कार है। सनातन धर्म में विशेष रूप से ब्राह्मण समुदाय में, उपनयन या जनेऊ संस्कार एक विशेष समारोह रहा है। माता-पिता इस संस्कार का आयोजन करते हैं और अपने बच्चे को वेद पाठशाला में भेजते हैं। यज्ञोपवीत संस्कार के अवसर पर पवित्र धागा पहनना और अपने बच्चे को गुरुकुल में प्रवेश के लिए तैयार करना ब्रह्म उपदेशम भी कहा जाता है। यज्ञोपवीत संस्कार में आप अपने प्रथम गुरु यानि अपने पिता से गायत्री मंत्र के बारे में जानेंगे। इसका जाप दिन में कम से कम दो बार किया जाता है। जनेऊ में मुख्यरूप से तीन धागे होते हैं। प्रथम यह तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। द्वितीय यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और तृतीय यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है। चतुर्थ यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है। पंचम यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है।
यज्ञोपवीत संस्कार में तीन धागों का महत्व
अविवाहित:एक कुंवारे व्यक्ति को केवल एक धागा पहनना चाहिए।
विवाहित:विवाहित व्यक्ति को 2 धागे पहनने चाहिए।
विवाहित और बच्चा:विवाहित व्यक्ति का एक बच्चा होता है तो वह 3 धागे पहनता है।
- प्रथम यह तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं।
- द्वितीय यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं।
- तृतीय यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है।
- चतुर्थ यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है।
- पंचम यह तीन आश्रमों का प्रतीक है।
हमारी सेवाएं
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पं.शांति भूषण शुक्ल
यज्ञोपवीत संस्कार पूजा लाभ
इस पूजा को करने से हमारे सभी पूर्वजों, देवी और देवताओं का आशीर्वाद सुनिश्चित होता है और बच्चे को सद्भाव,समृद्धि और स्वस्थ वैवाहिक जीवन मिलता है।
यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।